Lok Sabha Election 2204: क्या है कांग्रेस और आप की वे मुश्किलें, जिनसे दिल्ली में मजबूत दिख रहा भाजपा का किला?
Lok Sabha Election 2204: क्या है कांग्रेस और आप की वे मुश्किलें, जिनसे दिल्ली में मजबूत दिख रहा भाजपा का किला?
Lok Sabha Election 2024 दिल्ली में इस बार भाजपा का किले भेदने के लिए आम आदमी पार्टी औऱ कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है लेकिन उनके लिए राह आसान नहीं लग रही है। दोनों पार्टियां पहले से ही अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही हैं। इधर भाजपा का आक्रमक चुनावी अभियान भी उन पर हावी पड़ रहा है।
दिल्ली में आप के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस के कोटे की तीन सीटों में से दो पर प्रत्याशियों कन्हैया कुमार और उदितराज के पार्टी में विरोध के चलते कांग्रेस में मची अंदरूनी कलह गठबंधन प्रत्याशियों के लिए नई मुश्किलें लेकर आई है। स्थिति इस कदर गंभीर हो गई है कि शीला दीक्षित सरकार में कद्दावर मंत्री रहे और करीब एक सप्ताह पूर्व प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ने वाले अरविंदर सिंह लवली एक बार फिर पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।
आप प्रत्याशियों के लिए परेशानियां
उनके साथ पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान, पूर्व संसदीय सचिव नसीब सिंह, पूर्व विधायक नीरज बैसोया और पूर्व प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक ने भी पार्टी छोड़कर भगवा पटका पहन लिया है। इससे न सिर्फ कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए मुश्किलें पैदा हुई हैं, बल्कि आप के चार प्रत्याशियों के लिए भी परेशानियां बढ़ती दिख रही हैं।
भाजपा और आप प्रत्याशी दिल्ली की सातों सीटों पर एक माह से अधिक समय से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, जबकि कुछ दिन पूर्व कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी घोषित कर देने से वह भी अब मैदान में है। जोर तो दोनों ओर से लगाया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में भाजपा का किला अभी ढहता दिखाई नहीं दे रहा है।
भाजपा ने बदले प्रत्याशी
भाजपा अपने सात में से छह प्रत्याशियों को बदलकर दिल्ली के रण में उतरी तो उसके पीछे उसकी रणनीति यह थी कि उसके प्रत्याशियों का यदि स्थानीय स्तर पर कहीं विरोध होगा तो नए
Assam में चुनाव से पहले नया बवाल, डीलिमिटेशन पर Aam Aadmi Party ने उठाए सवाल । Election Commission
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Lok Sabha Election 2204: क्या है कांग्रेस और आप की वे मुश्किलें, जिनसे दिल्ली में मजबूत दिख रहा भाजपा का किला?
Lok Sabha Election 2024 दिल्ली में इस बार भाजपा का किले भेदने के लिए आम आदमी पार्टी औऱ कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है लेकिन उनके लिए राह आसान नहीं लग रही है। दोनों पार्टियां पहले से ही अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही हैं। इधर भाजपा का आक्रमक चुनावी अभियान भी उन पर हावी पड़ रहा है।
Lok Sabha Election 2204: क्या है कांग्रेस और आप की वे मुश्किलें, जिनसे दिल्ली में मजबूत दिख रहा भाजपा का किला?
Lok Sabha Election 2024: राजधानी की सभी सात सीटों पर छठे चरण में 25 मई को मतदान होगा।
सौरभ श्रीवास्तव, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस में घमासान और आम आदमी पार्टी (आप) के अपने मुखिया एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में जेल में होने के कारण कोर्ट-कचहरी में उलझे रहने के चलते चुनावी पलड़ा भाजपा का भारी नजर आ रहा है।
दिल्ली में आप के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस के कोटे की तीन सीटों में से दो पर प्रत्याशियों कन्हैया कुमार और उदितराज के पार्टी में विरोध के चलते कांग्रेस में मची अंदरूनी कलह गठबंधन प्रत्याशियों के लिए नई मुश्किलें लेकर आई है। स्थिति इस कदर गंभीर हो गई है कि शीला दीक्षित सरकार में कद्दावर मंत्री रहे और करीब एक सप्ताह पूर्व प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ने वाले अरविंदर सिंह लवली एक बार फिर पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।
आप प्रत्याशियों के लिए परेशानियां
उनके साथ पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान, पूर्व संसदीय सचिव नसीब सिंह, पूर्व विधायक नीरज बैसोया और पूर्व प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक ने भी पार्टी छोड़कर भगवा पटका पहन लिया है। इससे न सिर्फ कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए मुश्किलें पैदा हुई हैं, बल्कि आप के चार प्रत्याशियों के लिए भी परेशानियां बढ़ती दिख रही हैं।
भाजपा और आप प्रत्याशी दिल्ली की सातों सीटों पर एक माह से अधिक समय से चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, जबकि कुछ दिन पूर्व कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी घोषित कर देने से वह भी अब मैदान में है। जोर तो दोनों ओर से लगाया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में भाजपा का किला अभी ढहता दिखाई नहीं दे रहा है।
भाजपा ने बदले प्रत्याशी
भाजपा अपने सात में से छह प्रत्याशियों को बदलकर दिल्ली के रण में उतरी तो उसके पीछे उसकी रणनीति यह थी कि उसके प्रत्याशियों का यदि स्थानीय स्तर पर कहीं विरोध होगा तो नए उम्मीदवारों के साथ उस स्थिति से पार पाया जा सकेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उसने दो प्रत्याशी पूर्वी दिल्ली से महेश गिरी को बदलकर क्रिकेटर गौतम गंभीर और उत्तर पश्चिमी दिल्ली से उदित राज को बदलकर सूफी गायक हंसराज हंस को टिकट दिया था।
इस बार भी भाजपा की रणनीति काफी हद तक सही भी साबित होती दिख रही है। दिल्ली में भाजपा के नेता-कार्यकर्ता एकजुट होकर प्रत्याशियों के पीछे खड़े नजर आ रहे हैं। संगठनात्मक रूप से भी पार्टी इस बार भी बूथ से भी आगे पन्ना प्रमुख तक बनाकर चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा प्रत्याशी केंद्र सरकार के अच्छे काम गिनाने के साथ दिल्ली से जुड़े मुद्दे भी उठा रहे हैं।
भाजपा का आक्रामक अभियान
अयोध्या में राम मंदिर और उत्तर प्रदेश में अच्छी कानून-व्यवस्था का भी सांकेतिक रूप से स्मरण कराकर बढ़त लेने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी हों, दक्षिणी दिल्ली से रामवीर सिंह विधूड़ी हों, पश्चिमी दिल्ली से कमलजीत सहरावत हों या फिर उत्तर पश्चिमी दिल्ली से योगेंद्र चंदौलिया, इन भाजपा प्रत्याशियों के नामांकन से पूर्व निकाली गई यात्रा में दिख रहे बुलडोजर राजधानी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभाव को दर्शा रहे हैं।
वहीं, नामांकन से पूर्व निकाली गई यात्राओं में कमलजीत सहरावत धनुष बाण लेकर और चांदनी चौक से प्रत्याशी प्रवीण खंडेलवाल त्रिशूल लेकर हिंदुत्व के मुद्दे को धार देते हुए दिखाए देते हैं। नई दिल्ली से बांसुरी स्वराज स्वयं को अपनी दिवंगत मां पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के संस्कारों का सार बताकर प्रचार में जुटी हुई हैं, वहीं पूर्वी दिल्ली से हर्ष मल्होत्रा भी अपने क्षेत्र में जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी प्रचार के मामले में अब तक प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों से आगे नजर आते हैं।
कांग्रेस-आप में समन्वय समिति गठित होने में देरी
आप प्रत्याशियों में नई दिल्ली से सोमनाथ भारती, दक्षिणी दिल्ली से सहीराम पहलवान, पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा और पूर्वी दिल्ली से कुलदीप कुमार ‘जेल का जवाब वोट से देंगे’ नारे के साथ अपने-अपने क्षेत्र में प्रचार में जुटे हुए हैं। पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल अपने प्रत्याशियों के पक्ष में रोड शो भी कर रही हैं, लेकिन इन प्रत्याशियों को कहीं भी कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं का सहयोग मिलता दिखाई नहीं देता।
यही नहीं, कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित होने में देरी के कारण संयुक्त प्रचार के लिए दोनों दलों में आपसी समन्वय के लिए कुछ दिन पूर्व तक समिति भी नहीं बन पाई थी। कांग्रेस ने करीब 10 दिन पहले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी, पर आप की ओर से ऐसी समिति विधायक दुर्गेश पाठक के नेतृत्व में दो दिन पूर्व ही बनाई गई है। संभव है, अब दोनों दल समन्वय के साथ चुनाव प्रचार कर सकें।
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